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दिशोम गुरू शिबू सोरेन भारत रत्न के हे हकदार, कहा गुरु जी गरीबों-मजलूमों की थे आवाज़ – बेबी देवी

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संवाददाता डी सी महतो के खास रिपोर्ट

झारखण्ड  सरकार के पूर्व मंत्री सह बाल अधिकार संरक्षण आयोग  की अध्यक्ष बेवी देवी ने दिशोम गुरू शिबू सोरेन को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग की है।

उन्होंने कहा कि शिबू सोरेन भारत रत्न के हकदार हैं जो उन्हें जीवनकाल में ही मिल जाना चाहिए था। शिबू सोरेन ने हमेशा निचले पायदान पर खड़े लोगों के हक-अधिकार की लड़ाई लड़ी।

ये वो दौर था ज़ब महाजनी प्रथा से गरीब लोग परेशान थे। गुरूजी ने इसके खिलाफ जंग छेड़ी और गरीबों को महाजनों के आंतक से मुक्ति दिलाई।
जिस दौर में शिबू सोरेन ने गरीबों-मजलूमों की आवाज़ बुलंद की, उस वक्त महाजन व जमींदार लोग चंद पैसों के एवज में गरीब किसानों की जमीनें रजिस्ट्री ऑफिस में कठकेवाला करवा लेते थे। कठकेवाला में एक लिखित शर्त डलवा दी जाती थी कि निर्धारित दिनों में महाजन से लिया हुआ पैसा वापस कर देंगे नहीं तो वो जमीन महाजन की हो जाएगी।

गरीब किसान समय पर पैसा वापस नहीं कर पाते थे और वो जमीन महाजन ले लेता था। इसके लिए दिशोम गुरूजी ने धनकटनी अभियान चलाया और जिन ज़मीनों का कठकेवाला था और जिस पर महाजन लोग धान रोपते थे, फसल पकने के बाद उन्होंने धनकटनी अभियान शुरू करवाया। यानि, जिसका खेत, उसकी फसल। उन्होंने महाजनी प्रथा के खिलाफ लड़ाई लडकर इसके चंगुल में फंसे लोगों को इस तरह से मुक्ति दिलाई।
वहीं पूर्व मंत्री बेबी देवी  ने कहा कि अशिक्षा के खिलाफ भी गुरूजी ने लड़ाई लड़ी।

गांव के गरीबों को, डिबिया जलाकर पढने वालों के बीच गुरूजी ने लालटेन बांटा और कहा – “पढना जरूरी है।”
गुरूजी ने नशा के खिलाफ भी अभियान चलाया और हडिया दारू नहीं पीने को लेकर लोगों को, विशेष कर आदिवासी समाज को जागरूक किया ।

उन्होंने ने कहा कि गुरूजी ने केवल आदिवासी ही नहीं, बल्कि गरीब शोषित, पीड़ित, दलित, पिछडों , अल्पसंख्यकों के भी हक अधिकार की लड़ाई लड़ी।

उन्होंने सामाजिक न्याय की लड़ाई 70 के दशक से ही लडकर लोगों को हक अधिकार दिलाने का कार्य किया। झारखंड अलग राज्य निर्माण की लड़ाई लड़ी, अंततः 2000 ई में झारखंड का गठन हुआ, उनकी लड़ाई को मुकाम मिला।

वे 8 बार लोकसभा सदस्य, 3 बार राज्यसभा सदस्य और 3 बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को नेमरा गांव में हुआ था।

नेमरा गांव आज इतिहास के पन्नों में अमर हो गया। विगत 04 अगस्त 2025 को उनका निधन हो गया। भारत सरकार को उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करना चाहिए।

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