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 शिलापट्ट में क्यों छिपाई जाती जरूरी बातें,न प्राक्कलित राशि का जिक्र, न ही कार्य एजेंसी का रहता है नाम।

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सम्पर्कसूत्र, बोकारों

योजनाएं चाहे केंद्र सरकार की हो या राज्य सरकार की, जनता के ही खून पसीने की कमाई की टैक्स से संचालित होती है. ऐसे में जनता को यह जानने एवं समझने का पूरा हक है कि आखिर कौन सी योजना किस मद से निर्मित हो रही है. साथ ही योजना की प्राक्कलित राशि और कार्य एजेंसी की भी जानकारी लोगों को होनी चाहिए. शिलापट्ट में इतनी जानकारी तो स्पष्ट रूप से अंकित होनी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति शिलापट्ट को पढ़कर योजना का मद, प्राक्कलित राशि, कार्य एजेंसी, शिलान्यास या उद्घाटन की तिथि एवं सड़क है तो उसकी दूरी के साथ-साथ शिलान्यास या उद्घाटन में शामिल जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारी के बारे आसानी से जानकारी प्राप्त कर सकें।

वही दो चार साल से विभिन्न योजनाओं के शिलापट्ट पर गौर करें तो उसमें जरूरी जानकारी गायब रहती है. आखिर क्या कारण है कि संवेदक या कार्य एजेंसी जनता से इतनी महत्वपूर्ण सूचना को छिपाते हैं. सबसे आश्चर्य कि बात तो यह है कि जिन सांसद, विधायक से लेकर पंचायत प्रतिनिधियों से शिलान्यास या उद्घाटन करवाए जाते हैं, उन्हें भी ऐसे आधे अधूरे जानकारी वाले शिलापट्ट से कोई परहेज नहीं है।

पहले जितनी भी योजनाओं का शिलान्यास एवं उद्घाटन होता था, उन सभी योजनाओं में अनिवार्य रूप से इन सभी तरह की जानकारी अंकित जरूरी होता था. अब चाहे सीएम हो या मंत्री या सांसद व विधायक, वे ऐसे ही शिलापट्ट से ही योजनाओं का शिलान्यास व उद्घाटन करते हैं।

बीते दिनों बोकारो में सीएम हेमंत सोरेन समेत अन्य मंत्रियों ने करोड़ों की योजनाओं का शिलान्यास एवं उद्घाटन किया, लेकिन उन योजनाओं के शिलापट्ट में प्राक्कलित राशि का जिक्र तक नहीं है।

शिलापट्ट से लेकर शिलान्यास व उद्घाटन में खर्च होनेवाली राशि योजनाओं के प्राक्कलन में ही समाहित रहता है. ऐसे में ठेकेदार या संबंधित विभाग को चाहिए कि शिलापट्ट संगमरमर पत्थर पर खुदाई से लिखवाकर इसे ऐसे जगह स्थापित करें।

जो लंबे समय तक लोगों को योजनाओं की जानकारी का एक माध्यम बना रहे. लेकिन पिछले एक दशक में बड़े कार्यक्रम के शिलान्यास को छोड़कर ग्रामीण क्षेत्र में होनेवाले शिलान्यास का शिलापट्ट जैसे तैसे बनाकर जहां तहां स्थापित कर दिया जाता है।

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